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Top 51 Chalisa Lyrics | चालीसा संग्रह | Chalisa Sangrah In Hindi & English
यहाँ नीचे बॉक्स में कुछ Chalisa एवं कुछ चालीसा की कटेगरी दी गयी है, जो की Top 51 Chalisa Lyrics, आरतियो का संग्रह हैं-
- हनुमान चालीसा
- दुर्गा चालीसा
- विष्णु चालीसा
- भैरव चालीसा
- राम चालीसा
- शिव चालीसा
- कृष्ण चालीसा
- काली चालीसा
- बजरंग बाण
- श्री शनि देव चालीसा
- बगलामुखी चालीसा
- श्री लक्ष्मी अमृतवाणी लिरिक्स
- श्री कुबेर चालीसा लिरिक्स
- श्री लक्ष्मी चालीसा, अर्थ एव महत्त्व
- संकट मोचन हनुमान अष्टक
- साईं चालीसा
- हनुमान बाहुक
- भैरव चालीसा
- गोपाल चालीसा
- श्री काली चालीसा
- शिव अमृतवाणी लिरिक्स – भाग 1 से 5 तक
- लक्ष्मी माता भजन लिरिक्स
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यहाँ नीचे कुछ प्रमुख Chalisa Lyrics, चालीसा संग्रह, Chalisa Sangrah In Hindi दी गयी हैं –
Shri Ram Chalisa Lyrics – चालीसा संग्रह
|| श्री राम चालीसा लिरिक्स ॥
श्री रघुवीर भक्त हितकारी | सुन लीजै प्रभु अरज हमारी ||
निशिदिन ध्यान धरे जो कोई | त सम भक्त और नहिं होई ||
ध्यान धरे शिवजी मन माहीं | ब्रह्म इन्द्र पार नहिं पाही |
दूत तुम्हार वीर हनुमाना | जासु प्रभाव तिहुँ पुर जाना ||
तब भुज दण्ड प्रचण्ड कृपाला | रावण मारि सुरन प्रतिपाला |
तुम अनाथ के नाथ गुसाई | दीनन के हो सदा सहाई ||
ब्रह्मादिक तव पार न पावे | सदा ईश तुम्हरो यश गावैं ||
चारिहु वेद भरत है साखी। तुम भक्तन की लज्जा राखी ||
गुण गावत शारद मन माहीं | सुरपति ताको पार न पाहीं ||
नाम तुम्हार लेत जो कोई | ता सम धन्य और नहिं होई ||
राम नाम है अपरम्पारा | चारिउ वेदन जाहि पुकारा ||
गणपति नाम तुम्हारो लीनो | तिनको प्रथम पूज्य तुम कीनो ||
शेश रटत नित नाम तुम्हारा | महि को भार शीश पर धारा ||
फूल समान रहत सो भारा | पाव न कोऊ तुम्हरो पारा ||
भरत नाम तुम्हरो उर धारो | तासों कबहुं न रण में हारो ||
नाम शत्रुहन हृदय प्रकाशा | सुमिरत होत शत्रु कर नाशा ||
लखन तुम्हारे आज्ञा कारी | सदा करत संतन रखवारी ||
ताते रण जीते नहिं कोई | युद्ध जुरे यमहूं किन होई ||
महालक्ष्मी धर अवतारा | सब विधि करत पाप को छारा ||
सीता राम पुनीता गायो | भुवनेश्वरी प्रभाव दिखायो ||
घट सों प्रकट भई सो आई | जाको देखत चन्द्र लजाई ||
सो तुमरे नित पांव पलोटत | नवो निधि चरणन में लोटत ||
सिद्ध अठारह मंगलकारी | सो तुम पर जावै बलिहारी ||
औरहु जो अनेक प्रभुताई | सो सीतापति तुमहिं बनाई ||
इच्छा ते कोटिन संसारा | रचत न लागत पल की बारा ||
जो तुम्हे चरणन चित लावै | ताकी मुक्ति अवसि हो जावै ||
जय जय जय प्रभु ज्योति स्वरूपा | नर्गुण ब्रह्म अखण्ड अनूपा ||
सत्य सत्य जय सत्यव्रत स्वामी | सत्य सनातन अन्तर्यामी ||
सत्य भजन तुम्हरो जो गावे | सो निश्चय चारों फल पावे ||
सत्य शपथ गौरीपति कीन्हीं | तुमने भक्तिहिं सब विधि दीन्हीं ||
सुनहु राम तुम तात हमारे | तुमहिं भरत कुल पूज्य प्रचारे ||
तुमहिं देव कुल देव हमारे | तुम गुरु देव प्राण के प्यारे ||
जो कुछ हो सो तुम ही राजा | जय जय जय प्रभु राखो लाजा ||
राम आत्मा पोषण हारे | जय जय दशरथ राज दुलारे ||
ज्ञान हृदय दो ज्ञान स्वरूपा | नमो नमो जय जगपति भूपा ||
धन्य धन्य तुम धन्य प्रतापा | नाम तुम्हार हरत संतापा ||
सत्य शुद्घ देवन मुख गाया | बजी दुन्दुभी शंख बजाया ||
सत्य सत्य तुम सत्य सनातन। तुम ही हो हमरे तन मन धन ||
याको पाठ करे जो कोई | ज्ञान प्रकट ताके उर होई ||
आवागमन मिटै तिहि केरा | सत्य वचन माने शिर मेरा ||
और आस मन में जो होई | मनवांछित फल पावे सोई ||
तीनहुं काल ध्यान जो ल्यावे | तुलसी दल अरु फूल चढ़ावे ||
साग पत्र सो भोग लगावे | सो नर सकल सिद्घता पावे॥
अन्त समय रघुबरपुर जाई | जहां जन्म हरि भक्त कहाई॥
श्री हरिदास कहै अरु गावे | सो बैकुण्ठ धाम को पावे ||
|| श्री राम चालीसा लिरिक्स ॥ दोहा॥
सात दिवस जो नेम कर, पाठ करे चित लाय |
हरिदास हरि कृपा से, अवसि भक्ति को पाय ||
राम चालीसा जो पढ़े, राम चरण चित लाय |
जो इच्छा मन में करै, सकल सिद्घ हो जाय ||
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हनुमान चालीसा लिरिक्स दोहा :-
श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि |
बरनऊं रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि ||
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन कुमार |
बल बुद्धि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार ||
हनुमान चालीसा लिरिक्स चौपाई :-
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर |
जय कपीस तिहुं लोक उजागर ||
रामदूत अतुलित बल धामा |
अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा ||
महाबीर बिक्रम बजरंगी |
कुमति निवार सुमति के संगी ||
कंचन बरन बिराज सुबेसा |
कानन कुंडल कुंचित केसा ||
हाथ बज्र अरु ध्वजा बिराजै |
कांधे मूंज जनेऊ साजै ||
संकर सुवन केसरी नंदन |
तेज प्रताप महा जग बन्दन ||
विद्यावान गुनी अति चातुर |
राम काज करिबे को आतुर ||
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया |
राम लखन सीता मन बसिया ||
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा |
बिकट रूप धरि लंक जरावा ||
भीम रूप धरि असुर संहारे |
रामचंद्र के काज संवारे ||
लाय सजीवन लखन जियाये |
श्रीरघुबीर हरषि उर लाये ||
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई |
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई ||
सहस बदन तुम्हरो जस गावैं |
अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं ||
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा |
नारद सारद सहित अहीसा ||
जम कुबेर दिगपाल जहां ते |
कबि कोबिद कहि सके कहां ते ||
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा |
राम मिलाय राज पद दीन्हा ||
तुम्हरो मंत्र बिभीषन माना |
लंकेस्वर भए सब जग जाना ||
जुग सहस्र जोजन पर भानू |
लील्यो ताहि मधुर फल जानू ||
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं। |
जलधि लांघि गये अचरज नाहीं ||
दुर्गम काज जगत के जेते |
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ||
राम दुआरे तुम रखवारे |
होत न आज्ञा बिनु पैसारे ||
सब सुख लहै तुम्हारी सर ना |
तुम रक्षक काहू को डरना ||
आपन तेज सम्हारो आपै |
तीनों लोक हांक तें कांपै ||
भूत पिसाच निकट नहिं आवै |
महाबीर जब नाम सुनावै ||
नासै रोग हरै सब पीरा |
जपत निरंतर हनुमत बीरा ||
संकट तें हनुमान छुड़ावै |
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै ||
सब पर राम तपस्वी राजा |
तिन के काज सकल तुम साजा ||
और मनोरथ जो कोई लावै |
सोइ अमित जीवन फल पावै ||
चारों जुग परताप तुम्हारा |
है परसिद्ध जगत उजियारा ||
साधु-संत के तुम रखवारे |
असुर निकंदन राम दुलारे ||
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता |
अस बर दीन जानकी माता ||
राम रसायन तुम्हरे पासा |
सदा रहो रघुपति के दासा ||
तुम्हरे भजन राम को पावै |
जनम-जनम के दुख बिसरावै ||
अन्तकाल रघुबर पुर जाई |
जहां जन्म हरि-भक्त कहाई ||
और देवता चित्त न धरई |
हनुमत सेइ सर्ब सुख करई ||
संकट कटै मिटै सब पीरा |
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ||
जै जै जै हनुमान गोसाईं |
कृपा करहु गुरुदेव की नाईं ||
जो सत बार पाठ कर कोई |
छूटहि बंदि महा सुख होई ||
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा |
होय सिद्धि साखी गौरीसा ||
तुलसीदास सदा हरि चेरा |
कीजै नाथ हृदय मंह डेरा ||
हनुमान चालीसा लिरिक्स दोहा :-
पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप |
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप ||
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चालीसा- दुर्गा चालीसा लिरिक्स, Durga Chalisa Lyrics/Chalisa Lyrics, चालीसा संग्रह
नमो नमो दुर्गे सुख करनी | नमो – नमो अंबे दुःख हरनी ||
निरंकार है ज्योति तुम्हारी | तिहूं लोक फैली उजियारी ||
शशि ललाट मुख महाविशाला | नेत्र लाल भृकुटि विकराला ||
रूप मातु को अधिक सुहावे | दरश करत जन अति सुख पावे ||
तुम संसार शक्ति लै कीना | पालन हेतु अन्न धन दीना ||
अन्नपूर्णा हुई जग पाला | तुम ही आदि सुन्दरी बाला ||
प्रलयकाल सब नाशन हारी | तुम गौरी शिवशंकर प्यारी ||
शिव योगी तुम्हरे गुण गावें | ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें ||
रूप सरस्वती को तुम धारा | दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा ||
धरयो रूप नरसिंह को अम्बा | परगट भई फाड़कर खम्बा ||
रक्षा करि प्रह्लाद बचायो | हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो ||
लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं | श्री नारायण अंग समाहीं ||
क्षीरसिन्धु में करत विलासा | दयासिन्धु दीजै मन आसा ||
हिंगलाज में तुम्हीं भवानी | महिमा अमित न जात बखानी ||
मातंगी अरु धूमावति माता | भुवनेश्वरी बगला सुख दाता ||
श्री भैरव तारा जग तारिणी | छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी ||
केहरि वाहन सोह भवानी | लांगुर वीर चलत अगवानी ||
कर में खप्पर खड्ग विराजै | जाको देख काल डर भाजै ||
सोहै अस्त्र और त्रिशूला | जाते उठत शत्रु हिय शूला ||
नगरकोट में तुम्हीं विराजत | तिहुँलोक में डंका बाजत ||
शुम्भ निशुम्भ दानव तुम मारे | रक्तन बीज शंखन संहारे ||
महिषासुर नृप अति अभिमानी | जेहि अघ भार मही अकुलानी ||
रूप कराल कालिका धारा | सेन सहित तुम तिहि संहारा ||
परी गाढ़ सन्तन पर जब जब | भई सहाय मातु तुम तब तब ||
आभा पुरी अरु बासव लोका | तब महिमा सब रहें अशोका ||
ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी | तुम्हें सदा पूजें नर-नारी ||
प्रेम भक्ति से जो यश गावें | दुःख दारिद्र निकट नहिं आवें ||
ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई | जन्म-मरण ताकौ छुटि जाई ||
जोगी सुर मुनि कहत पुकारी | योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी ||
शंकर आचारज तप कीनो | काम क्रोध जीति सब लीनो ||
निशिदिन ध्यान धरो शंकर को | काहु काल नहिं सुमिरो तुमको ||
शक्ति रूप का मरम न पायो | शक्ति गई तब मन पछितायो ||
शरणागत हुई कीर्ति बखानी | जय जय जय जगदम्ब भवानी ||
भई प्रसन्न आदि जगदम्बा | दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा ||
मोको मातु कष्ट अति घेरो | तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो ||
आशा तृष्णा निपट सतावें | रिपु मुरख मोही डरपावे ||
शत्रु नाश कीजै महारानी | सुमिरौं इकचित तुम्हें भवानी ||
करो कृपा हे मातु दयाला | ऋद्धि-सिद्धि दै करहु निहाला ||
जब लगि जियऊं दया फल पाऊं | तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊं ||
श्री दुर्गा चालीसा जो कोई गावै | सब सुख भोग परमपद पावै ||
देवीदास शरण निज जानी | करहु कृपा जगदम्ब भवानी ||
|| इति श्रीदुर्गा चालीसा सम्पूर्ण || दुर्गा चालीसा लिरिक्स ||
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श्री काली चालीसा लिरिक्स
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श्री काली चालीसा दोहा –
जयकाली कलिमलहरण, महिमा अगम अपार
महिष मर्दिनी कालिका, देहु अभय अपार ||
अरि मद मान मिटावन हारी | मुण्डमाल गल सोहत प्यारी ||1||
अष्टभुजी सुखदायक माता | दुष्टदलन जग में विख्याता ||2||
भाल विशाल मुकुट छवि छाजै | कर में शीश शत्रु का साजै ||3||
दूजे हाथ लिए मधु प्याला | हाथ तीसरे सोहत भाला ||4||
चौथे खप्पर खड्ग कर पांचे | छठे त्रिशूल शत्रु बल जांचे ||5||
सप्तम करदमकत असि प्यारी | शोभा अद्भुत मात तुम्हारी ||6||
अष्टम कर भक्तन वर दाता | जग मनहरण रूप ये माता ||7||
भक्तन में अनुरक्त भवानी | निशदिन रटें ॠषी-मुनि ज्ञानी ||8||
महशक्ति अति प्रबल पुनीता | तू ही काली तू ही सीता ||9||
पतित तारिणी हे जग पालक | कल्याणी पापी कुल घालक ||10||
शेष सुरेश न पावत पारा | गौरी रूप धर्यो इक बारा ||11||
तुम समान दाता नहिं दूजा | विधिवत करें भक्तजन पूजा ||12||
रूप भयंकर जब तुम धारा | दुष्टदलन कीन्हेहु संहारा ||13||
नाम अनेकन मात तुम्हारे | भक्तजनों के संकट टारे ||14||
कलि के कष्ट कलेशन हरनी | भव भय मोचन मंगल करनी ||15||
महिमा अगम वेद यश गावैं | नारद शारद पार न पावैं ||16||
भू पर भार बढ्यौ जब भारी | तब तब तुम प्रकटीं महतारी ||17||
आदि अनादि अभय वरदाता | विश्वविदित भव संकट त्राता ||18||
कुसमय नाम तुम्हारौ लीन्हा | उसको सदा अभय वर दीन्हा ||19||
ध्यान धरें श्रुति शेष सुरेशा | काल रूप लखि तुमरो भेषा ||20||
कलुआ भैंरों संग तुम्हारे | अरि हित रूप भयानक धारे ||21||
सेवक लांगुर रहत अगारी | चौसठ जोगन आज्ञाकारी ||22||
त्रेता में रघुवर हित आई | दशकंधर की सैन नसाई ||23||
खेला रण का खेल निराला | भरा मांस-मज्जा से प्याला ||24||
रौद्र रूप लखि दानव भागे | कियौ गवन भवन निज त्यागे ||25||
तब ऐसौ तामस चढ़ आयो | स्वजन विजन को भेद भुलायो ||26||
ये बालक लखि शंकर आए | राह रोक चरनन में धाए ||27||
तब मुख जीभ निकर जो आई | यही रूप प्रचलित है माई ||28||
बाढ्यो महिषासुर मद भारी | पीड़ित किए सकल नर-नारी ||29||
करूण पुकार सुनी भक्तन की | पीर मिटावन हित जन-जन की ||30||
तब प्रगटी निज सैन समेता | नाम पड़ा मां महिष विजेता ||31||
शुंभ निशुंभ हने छन माहीं | तुम सम जग दूसर कोउ नाहीं ||32||
मान मथनहारी खल दल के | सदा सहायक भक्त विकल के ||33||
दीन विहीन करैं नित सेवा | पावैं मनवांछित फल मेवा ||34||
संकट में जो सुमिरन करहीं | उनके कष्ट मातु तुम हरहीं ||35||
प्रेम सहित जो कीरति गावैं | भव बन्धन सों मुक्ती पावैं ||36||
काली चालीसा जो पढ़हीं | स्वर्गलोक बिनु बंधन चढ़हीं ||37||
दया दृष्टि हेरौ जगदम्बा | केहि कारण मां कियौ विलम्बा ||38||
करहु मातु भक्तन रखवाली | जयति जयति काली कंकाली ||39||
सेवक दीन अनाथ अनारी | भक्तिभाव युति शरण तुम्हारी ||40||
श्री काली चालीसा दोहा –
प्रेम सहित जो करे, काली चालीसा पाठ |
तिनकी पूरन कामना, होय सकल जग ठाठ ||
Kaali Chalisa Lyrics विडियो
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गोपाल चालीसा लिरिक्स
पुत्र प्राप्ति के लिए हर रोज Shri Gopal Chalisa का पाठ करना चाहिए | Top 10 Chalisa Lyrics, चालीसा संग्रह
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यहाँ Shri Gopal Chalisa Lyrics In Hindi, गोपाल चालीसा लिरिक्स दिया गया है –
श्री गोपाल चालीसा दोहा –
श्री राधापद कमल रज, सिर धरि यमुना कृल |
वरणो चालीसा सरस, सकल सुमंगल मूल ||
श्री गोपाल चालीसा चौपाई –
जय जय पूरण ब्रह्म बिहारी, दष्ट दलन लीला अवतारी |
जो कोई तुम्हारी लीला गावै, बिन श्रम सकल पदारथ पावे ||
श्री वसुदेव देवकी माता, प्रकट भये संग हलधर भ्राता |
मथुरा से प्रभु गोकुल आये, नन्द भवन में बजत बधाये ||
जो विष देना पूतना आई, सो मुक्ति का धाम पठाई |
तृणावर्त राक्षस संहार्यौ, पग बढ़ाये सकटासुर मार्यौ ||
खेल खेल में माटी खाई, मुख में सब जग दियो दिखाई |
गोपिन घर घर माखन खायो, जसुमति बाल केलि सुख पायो ||
ऊखल सों निज अंग बधाई, यमलार्जुन जड़ योनि छुड़ाई |
बकासुर की चोंच विदारी, विकट अधासुर दियो सँहारी ||
ब्राह्मण बालक वत्स चुराये, मोहन को मोहन हित आये |
बाल वत्स सब बने मुरारी, ब्रह्मा विनय करी तब भारी ||
काली नाग नाथि भगवान, दावानल को कीन्हों पाना |
सजन संग खेलत सुख पायो, श्रीदेवी निज कन्ध चढ़ायो ||
चीर हरण करि सीख सिखाई, नख पर गिरवर लियो उठाई |
दरश यज्ञ पत्नी को दीन्हों, राधा प्रेम सुधा सुख लीन्हों ||
नन्दहिं वरुण लोक से लाये, ग्वालन को निज लोक दिखाये |
शरद चन्द्र लखि वेणु बजाई, अति सुख दीन्हों रास रचाई ||
अजगर से पितृ चरण छुड़ायो, शंखचूड़ को मोड़ गिरायो |
व्याकुल ब्रज तजि मथुरा आये, मारि कंस यदुवंशी हसाये ||
मात पिता की यन्दि छुड़ाई, सान्दीपनि गृह विद्या पाई |
पनि पठयौ ब्रज ऊधो ज्ञानी, प्रेम देखि माथि सकल भुलानी ||
कीन्हीं कुबरी सुन्दर नारी, हरि लाये रुक्मणी सुकुमारी |
भस्मासुर हनि भक्त छुड़ाये सुरन जीति सुरतरु महि, लाये ||
दन्तवक्र शिशुपाल संहारे, खग मृग मृग अरु बधिक उधारे |
दीन सुदामा गणपति कीन्हों, पारथ रथ सारथि यश लीन्हों ||
गीता ज्ञान सिखावन हारे, अर्जुन मोहि मिटावन हारे |
केला भक्त विदुर घर पायो, युद्ध महाभारत रचवायो ||
द्रुपद सुता को चीर बढ़ायो, गर्भ परीक्षित जरत बचायो |
कच्छ मच्छ वाराह अहीशा, बावन कल्की बुद्धि मुनीशा ||
है नृसिंह प्रह्लाद उतार्यो, राम रूप धरि रावण मारो |
जय मधु कैटभ दैत्य हनैया, अम्बरीष प्रिय चक्र धरेया ||
व्याध अजामिल दीन्हें तारी, शबरी अरु गणिका सी नारी |
गरुड़ासन गज फन्द निकंदन, देहु दरश ध्रुव नैना नन्दन ||
देहु शुद्ध सन्तन कर सङ्गा, बड़े प्रेम भक्ति रस रङ्गा |
देहु दिव्य वृन्दावन बासा, छूटै मृग तृष्णा जग आशा ||
तुम्हरो ध्यान धरत शिव नारद, शुक सनकादिक ब्रह्मा विशारद |
जय जय राधा रमण कपाला, हरण सकल संकट भ्रम जाला ||
बिनसैं बिघन रोग दुःख भारी, जो सुमिरै जगपति गिरधारी |
जो सत बार पढ़े चालीसा। देहि सकल बाँछित फल शीशा ||
श्री गोपाल चालीसा छन्द –
गोपाल चालीसा पढ़े नित, नेम सों चित्त लावई |
सो दिव्य तन धरि अन्त महँ, गोलोक धाम सिंधवाई ||
संसार सुख सम्पत्ति सकल,जो भक्तजन सन महँ चहें |
जयरामदेव सदैव सो, गुरुदेव दाया सों लहैं ||
श्री गोपाल चालीसा दोहा –
प्रणत पाल आश्रय शरण, करुणा-सिंधु ब्रजेश |
चालीसा के संग मोहि, अपनावाहु प्राणेश || Top 51 Chalisa Lyrics, चालीसा संग्रह
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